Wednesday, October 19, 2022

योद्धा

Sometimes the strongest among us are the ones who smile through silent pain, cry behind closed doors, and fight...

सारी जंगों को जितने वाला भी एक जंग हार जाता है
सामने खड़ी हार को देख वो शायद टूट जाता है
पर बरसों के जंग ने उस योद्धा को यह आत्मविश्वास दिया है
की वह मौत को भी आंखों में देख कर कहे वो जीना चाहता है

उदासी, दुःख और हाथ से छूटती जिंदगी
इन सब का भान हो फिर भी निडरता
और अपनी संतति को खड़ा करने का कर्तव्य बोध 
एक इंसान को एक योद्धा, एक भगवान बना जाता है

कभी भी एक आंसू बिना बहाए
आखिरी दिनों तक काम करने वाले मेरे पापा 
मैं आपको कैसे भूल पाऊंगा 
मैं आप जैसा मजबूत नहीं हूं, 
हर दिन आपको याद करके आज भी रोता हूं

प्रार्थना करता हूं बस भगवान से 
मुझे आप जैसी शक्ति दे
आप मेरे निर्णयों में किसी तरह अपनी बात रखें 
आपको साक्षी मान कर ही मैं कोई निर्णय ले पाता हूं

- प्रत्यूष 

Wednesday, July 27, 2022

एक बरस बीत गया

I can no longer see you with my eyes, touch you with my hands, But I will feel you in my heart forever.

मेरे सपनों में भी आइए पापा
कुछ प्यार, कुछ डांट कुछ बातें 
अपना हाल बता जाइए पापा
आपको गए एक बरस बीतने को है

एक भी दिन ऐसा नहीं गुजरा जिस दिन मैं रोया नहीं
आप सबके सपने में आए पापा 
पर मुझे भूल गए
मुझे भी नींद में सहला जाइए पापा

बहुत कुछ बदल गया इस एक साल में
जिम्मेदारी का अहसास हो गया
थोड़ा दुनिया से विरक्त भी हो गया 
आपका एहसास और गहरा हो गया

मणिकर्णिका में ढूंढता हूं आपको 
गंगा में छूता हूं, 
आप दिखते तो नहीं पर आप हैं 
हर पल अपने चारो तरफ
आपको महसूस करता हूं

- प्रत्यूष 

Monday, June 27, 2022

कुछ को ये बात आसान लगती है

With ordinary talent and extraordinary perseverance, all things are attainable

पत्थर से भगवान बनते हैं
मिट्टी से अनाज बनते हैं 
दिन बनाने में रात लगती है
कुछ को ये बात आसान लगती है 

लोहे से औजार बनते हैं
पौधे से पोशाक बनते हैं
जिंदगी बनाने में जिंदगियां लगती हैं
कुछ को ये बात आसान लगती है 

एक सपने से नए मुकाम बनते हैं
एक कदम से दुनिया नपती है
सफलता अर्जित करने में सदियां लगती है
कुछ को ये बात आसान लगती है

पीढ़ियों के तप से संस्कार बनते हैं
व्यक्तियों के तप से समाज बनते हैं
समाजों के तप से देश बनता है
कुछ को ये बात आसान लगती है

- प्रत्यूष 

Saturday, May 07, 2022

क्षण

      Life is to be lived from moment to moment.


क्षण में बदलती जिंदगी
क्षण में उजड़ती जिंदगी
क्षण में संवरती जिंदगी
क्षण में मिटती जिंदगी

एक क्षण पहले रिश्ते
अगले क्षण सिर्फ लाश
एक क्षण खुशहाल परिवार
अगले क्षण ना भूल सकने वाला दुःख

एक क्षण पहले जीवन में ऊंचा सपना
अगले क्षण सिर्फ जीना ही सपना 
इन क्षणों के बीच ही है जिंदगी 
इन क्षणों में बदल जाती है जिंदगी

क्षणों पर हमारी प्रतिक्रिया,
नए परिस्थितियों में ढलना
इन सबों के बीच अपनी रफ्तार से चल रही होती है जिंदगी
और हम इसे चलाने का दंभ भर रहे होते हैं ।

- प्रत्यूष 

Tuesday, March 01, 2022

कौन है वो ?

       “that which is not; that which is dissolved"

ये माटी के पुतलों को कौन चला रहा है ?
कौन इनमें भावना और जान भर रहा है ?
कौन धरा पर असंख्य पेड़ पौधे उगा रहा ?
कौन चिड़ियों में इतने रंग भर रहा ? 

विज्ञान पहेली सुलझा तो रहा है
पर जितनी बातें सुलझ रही हैं
उतनी ही उलझती जा रही हैं
और शायद दूर बैठा कोई हंस रहा है

जीवन मरण से दूर
सुख दुःख से दूर
क्या कोई हमें देख रहा है?
क्या कोई हमारा भाग्य लिख रहा है?

दिल और दिमाग में द्वंद जारी है 
अगर विज्ञान की माने तो पापा फिर नहीं मिलेंगे
अगर अध्यात्म की माने तो शायद वो उस पार हमारा इंतजार कर रहे हैं
मां का धैर्य देखता हूं तो लगता है वो मिलेंगे 
पर विज्ञान डरा रहा है, बहुत रुला रहा है

इस का जवाब सिर्फ एक के पास है
वो इस पार भी देख रहा और उस पार भी
शायद उसकी मर्जी से सब चल रहा
या वो भी नियमों से बंधा है

- प्रत्यूष 
(महाशिवरात्रि, 2022, काशी)

Thursday, November 18, 2021

माँ

 “The art of mothering is to teach the art of living to children.”

माँ से सीखा धैर्य
माँ से सीखा शौर्य
माँ से सीखा विश्वास
माँ से सीखा परिहास

माँ से सीखा स्वीकारना 
माँ से सीखा जरूरत पड़ने पर लड़ना
माँ से सीखा प्यार 
माँ से सीखा दुलार 

माँ से सीखा धर्म
माँ से सीखा कर्म 
माँ से सीखा दया 
माँ से सीख रहा हूँ अनुशासन

और यह सब माँ ने सिखलाया नहीं
माँ ने सब जी कर दिखाया

- प्रत्यूष 

Friday, November 12, 2021

नई सुबह

“There will come a time when you believe everything is finished; that will be the beginning.”

औरंगाबाद में अस्त हुआ सूरज आज काशी में निकला है 
जीर्ण शीर्ण चोले को छोड़ कर आज नया रूप निखरा है 
नए जोश से नया इतिहास फिर लिखा जाएगा
दुनिया देखेगी ऐसा काम किया जाएगा

अपने समय से हमेशा आगे सोचने वाले मेरे पापा
कभी हमें अपने सोच में नहीं बाँधने वाले मेरे पापा
हमें उड़ने को पूरा आसमान देने वाले मेरे पापा
उनकी सीख आगे की राह दिखाएगी 

इस झंझावात में रिश्तों का नया मतलब समझ आया है
परिवार, दोस्त, साथ काम करने वाले कुछ का रूप निखर आया है
उनके साथ को जिंदगी भर भूल नहीं पाऊँगा
उन रिश्तों की गहराई को अब समझ जाऊँगा

पापा का जाना और बचपन के घर का छूटना 
ऐसे घाव हैं जो कभी भर नहीं पाएंगे
पर दूसरों की छत और आसमान बनना है 
इसीलिए यादों को संजों कर आगे बढ़ना है

- प्रत्यूष


Sunday, November 07, 2021

अलविदा औरंगाबाद

“Nothing is ever really lost to us as long as we remember it.”

घर भी शायद रो रहा, मुझे आज सोने नहीं दे रहा 
घर में आखिरी रात नींद नहीं आ रही
जहाँ पिछले तीस सालों से सबसे प्यारी नींद आती थी
आज यादों का सैलाब मुझे सोने नहीं दे रहा

अब कोई पूछेगा की कहाँ से हो
तो अब औरंगाबाद नहीं कह पाऊँगा
पापा की कुर्सी खाली हो गई है
आज ये घर खाली हो जाएगा 

पापा के बिना ये घर खाली करना
पापा के जाने जितना ही दुख दे रहा है
मकान बदलते जाएंगे, लोग छूटते जाएंगे
जो भी आया है इस संसार में वो एक दिन चला जायेगा

उनके यादों के सहारे जिया जाएगा
अपना किरदार अदा किया जाएगा 
फिर अगली पीढ़ी को यादें सौंप कर 
खुद प्रत्यूष भी एक दिन चला जायेगा

- प्रत्यूष 

Thursday, November 04, 2021

जिंदगी और यादें

A moment lasts for seconds but the memories lasts forever.

जिंदगी फ़िल्म की तरह चल रही है
पीछे मुड़ कर देखो तो गुज़रे पल 
तस्वीरों की तरह दिखते फिर ओझल 
हो जाते हैं 
कुछ चमकीले तस्वीरें हैं, कुछ धुंधली  

आज आया हूँ अपना घर समेटने
उस कमरे से दादा की आवाज आ रही है
सोफे पर बैठे पापा दिख रहे हैं
छोटा मैं अपनी बहनों के साथ खेलता दिख रहा हूँ
साथ में पॉपी, पैंजी, जैकी, शेरू दिख रहे

कभी स्कूल के लिए सामान लगाता दिख रहा हूँ
कभी कॉलेज के लिए जाता दिख रहा हूँ
कभी शादी करके सौम्या को लाता दिख रहा हूँ 
कभी अपनी सारी बदमाशियाँ देख रहा हूँ

अगरबत्ती के धुंए की तरह
सब दिख रहे फिर ओझल हो जा रहे 
खुशबू सबकी आ रही, दिखाई कोई नहीं दे रहा 
यादों का यह सैलाब कभी हँसा रहा है, कभी बहुत रुला 

मुट्ठी से रेत सी फिसलती ये जिंदगी सिर्फ इस पल है, 
अगले पल का पता नहीं 
और पिछला धुंए की तरह उड़ चुका है 
सिर्फ रह गयी है उसकी खुशबू

- प्रत्यूष

Wednesday, November 03, 2021

मेरा घर

“Home is not a place…it’s a feeling.”

बचपन की यादों में भीगा मेरा वो घर
पापा के मेहनत से बना मेरा वो घर
माँ की दुलारों से सज़ा मेरा वो घर
अब हमेशा के लिए छूट रहा 

पापा का वो सिंहासन वाला सोफा
माँ को वो दोपहर को सोने वाला सोफा
पापा की बागवानी, माँ की तुलसी की देहरी
अब हमेशा के लिए छूट रहा

दादा, दादी का वो कमरा 
उनकी यादें, उनकी बातें 
जैकी, शेरू, नंदनी और बहुत से साथी 
सबकी यादों वाला मेरा वो घर 
अब हमेशा के लिए छूट रहा

बहनों के साथ गुज़रे बचपन के वो दिन 
उनसे झगड़े, उनके साथ मस्तियाँ
उनकी शादियाँ
उनके बच्चों की किलकारियाँ
यह सब देखने वाला मेरा वो घर 
अब हमेशा के लिए छूट रहा

लक्ष्मण जी, सुरेंद्र जी, खुर्शीद भईया
मनीष, मनोज, घुँघरू और माया
इनकी यादों से महका मेरा वो घर
अब हमेशा के लिए छूट रहा

कहीं भी रहा, सबसे प्यारी नींद उसी घर में आयी 
कभी भी फिसला, उसी घर में आ कर सँभला
स्कूल - कॉलेजों से जब मौका मिला 
भागा मैं अपने घर 
पूरे शहर का सबसे खूबसूरत था वो मेरा घर
अब हमेशा के लिए छूट रहा

बचपन मेरा छूट रहा
जड़ों से अपने मैं कट रहा 
निर्णय तो हमने ही लिया था 
पर पापा के बिना, उसको छोड़ना 
दिल बिल्कुल तोड़ रहा 

मकान तो बहुत बन जाएंगे 
पर मेरा घर हमेशा के लिए छूट रहा

- प्रत्यूष

Saturday, October 16, 2021

पिता

      "All that we love deeply becomes part of us."

नए पत्ते आएंगे, पुराने गिरते जाएंगे
नए पेड़ उगेंगे, पुराने गिरते जाएंगे
पुराने गिर के उसी मिट्टी में मिल जाएंगे
खाद बन जाएंगे, 
तिल तिल गिरते उस पिता पेड़ की खाद
नई संततियों को पोषित करेंगे
पिता कभी मरता नहीं, 
खुद से खुद को पोषित करता रहता है
बीज नए वृक्ष का निर्माण करते रहते हैं
जंगल बढ़ता जाता है
मरता कोई नहीं, रूप बदलते जाते हैं
और पिता अपने बच्चों में जीवित रहता है

- प्रत्यूष

Sunday, October 03, 2021

पापा थे तो

"Papa, your guiding hand on my shoulders will remain with me forever"

पापा थे तो सपने थे 
तूफानी आसमानों में भी 
अपने पंख तगड़े थे

पापा थे तो शक्ति थे
किसी भी हालातों से लड़ने के लिए भी 
अपने हौसले पक्के थे 

पापा थे तो हिम्मत थे 
कठिन चुनौतियों पर भी 
कदम अपने डगमगाते नहीं थे

पापा थे तो एक एहसास थे
कड़ाके की सर्दी में भी 
रज़ाई वाली गर्मी थे 

पापा थे तो हम बेफिक्र थे 
जिंदगी में मस्ती थी, संगीत था

अब पापा नहीं हैं तो 
जिम्मेदारियों का बोझ है 
अकेले तूफानी आसमानों में उड़ने 
वाले पंख नहीं है

पापा नहीं हैं तो 
हिम्मत नही है हौसला नहीं है 
अकेले जिंदगी से 
लड़ने का जज़्बा नहीं है

पापा नहीं है तो 
रो भी नहीं सकते
बहुतों की हिम्मत जो बनना है

Monday, September 20, 2021

फिर मिलेंगे पापा

“Only in the agony of parting do we look into the depths of love.”

अलविदा पापा
जी भर आपने जिया, हर काम पूरा अपना किया
अपने जिद्द पर जिया, अपने जिद्द पर गए

पंचतत्व में आप विलीन हो गए
मणिकर्णिका की राख में आप मिल गए 
गँगा की लहरों में आप समा गए 

पता नहीं फिर कब आपसे मिल पाऊँगा
काशी की हवा और गँगा के पानी में 
आपको हमेशा महसूस करूंगा 

मेरी हर इच्छा आपने पूरी की
बस अपनी हिम्मत और जीवटता का आशीर्वाद दीजिए पापा
महादेव से यही विनती होगी 
की फिर आपका बेटा बन कर जन्म लूँ पापा

- प्रत्यूष

The Last Goodbye

Go forth, go forth upon those ancient pathways,
By which your former fathers have departed.
Thou shalt behold god Varuna, and Yama,
both kings, in funeral offerings rejoicing.
Unite thou with the Fathers and with Yama,
with istapurta in the highest heaven.
Leaving behind all blemish homeward return,
United with thine own body, full of vigor.

— Rigveda 10.14, Yama Suktam

Saturday, September 18, 2021

अलविदा पापा

"My father didn't tell me how to live; he lived, and let me watch him do it."


अब कौन मेरा ढाल बनेगा 
कौन मुझे उबारेगा 
कौन मेरी गलतियाँ बता कर 
मुझको और संवारेगा

हर मुश्किल में आप खड़े थे पापा
बिल्कुल एक दोस्त की तरह
अब कैसे रह पाऊँगा पापा
मैं आपके बिना 

कैसे सब सुलझाऊँगा
कैसे सब संभालूँगा
कैसे सबका सहारा बनूँगा
कैसे खड़ा हो पाऊँगा

कितना सोचा था, साथ रहेंगे
साथ सुबह टहलने चलेंगे 
साथ अस्सी पर संगीत सुनेंगे
रोज़ आपसे बातें होगी
झगड़े होंगे, पार्टी होगी 

पर शिव की तरह आप भविष्य देख रहे थे
सारी योजना, आप अपने बाद की कर रहे थे
एक भी क्षण आपने आराम नहीं किया
सत्तर साल में अस्सी साल को आपने जिया

मैंने महादेव को देखा नहीं पर 
उनके व्यक्तित्व से आपमें 
कुछ अंतर नहीं देख पाया
योगी, करुणा, पुरुषार्थ, क्रोध 
सब आपमें पाया
 
आप मेरे महादेव हो, महादेव की शरण अब आप जा रहे
रोक मैं पा नहीं रहा आपको, हर बार की तरह पापा
तरसूँगा मैं बहुत हर बार की तरह पापा
बस इस बार आप लौट कर नहीं आएंगे 
हर पल बहुत याद आएंगे पापा 

- प्रत्यूष 



पापा नहीं उठे

Life is what happens when you're busy making other plans.


पापा एक बार उठ जाइये
उठ कर मुझे गले लगाइये
फिर से मुझे बातें समझाइये
फिर से मेरा हाथ पकड़िये

बहुत सारी बातें अधूरी रह गयी हैं
उनको पूरा कर जाइये
बहुत से चीज़ें मैंने सीखी नहीं हैं 
उन्हें सिखला जाइये 

पापा, मुझे छोड़ कर मत जाइये
आप योद्धा हैं, मेरे हीरो हैं 
जीत कर वापस आइये
हमें अनाथ मत बनाइये 

बहुत कुछ बदल जायेगा 
पर आपके बिना कैसे जीया जायेगा 
मेरी गलतियाँ माफ कर जाइये
पापा आप लौट आइये

बहुत सारे सपने थे हमारे
उन्हें पूरा कर जाइये 
अपनी छाँव के नीचे 
मुझे फिर एक बार सुला जाइये

- प्रत्यूष



Tuesday, September 14, 2021

जिंदगी समझने की बारी है


“There are special people in our lives who never leave us …. even after they are gone.”

शरीर तिल तिल टूट रहा है, 
वापस से पंच तत्व में मिलने की तैयारी है 
आत्मा पिंजड़े से आज़ाद हो रही है,
फिर से परमात्मा में जुड़ने की बारी है

बारी बारी मोह के बंधन टूट रहे हैं 
मृत्युलोक से विदा की तैयारी है
अंग अंग टूट रहा, वेंटीलेटर जीवन को खींच रहा
मौत ही मुक्ति है, यह अहसास होने की बारी है

सामने बैठ कर असहाय देख रहा हूँ
पैसे से एक साँस भी खरीद नहीं सकते
अपनी औकात समझने की बारी है 
जब बुलावा आएगा, तो हर कोई जाएगा
यह बात समझने की बारी है

- प्रत्यूष 



Sunday, September 12, 2021

चालीस की उम्र

   Life is somewhere between hope & hard facts !

मृत्यु द्वार खड़ी है, कैसे उसे समझाऊँ
छोड़ दो मेरे पिता को, कैसे उसे भरमाऊँ
योद्धा को शिथिल देखना, मन को कसकाता है 
उसको हारता देख, दिल डूबा जाता है 

चालीस की उम्र भी अजीब है 
एक तरफ अस्त होता पिता, 
एक तरफ उदय होता पुत्र है

प्रारब्ध के आगे सब लाचार हैं 
अपनी बारी आने पर, 
सब चीज़ें बेकार हैं 

-प्रत्यूष

Saturday, May 15, 2021

शूलटंकेश्वर महादेव

     If Shiva is all you have. You have all you need.


जय जय बाबा शूलटंकेश्वर
कष्ट हरो हे भोले शंकर
ऋषि माधव के आश्रम में 
तुम विराजे गंगा तीर

तुम काशी दक्षिण द्वार कहावें 
स्कन्दपुराण भी महिमा गावैं
काशी खंड में वर्णन तेरे
यहां तो स्वयं महादेव पधारे

गंग प्रकोप से काशी बचाने
त्रिशूल अपना यहाँ है गाड़े 
उन्मादी महाप्रलय से रक्षा को
देव - देवता तुम्हें पुकारे 

काशी की रक्षा को तुमने
मांगे लिये दो वर भागीरथी से
स्पर्श मात्र करो काशी को
और बचाओ जलचरों से

बदल वेग-दिशा माँ गंगे 
काशी दियो बचाये
सौम्य शांत उत्तरवाहिनी हो
वचन दियो निभाये

कष्ट हरो हे भोले शंकर
जय हो बाबा शूलटंकेश्वर


- प्रत्यूष 

14/05/21 (अक्षय तृतीया) 

Monday, January 25, 2021

बेटियाँ

Daughters are collective responsibility of society


बेटियाँ हैं तो सृजन है, जीवन है, खुशियाँ हैं । 
बेटियाँ हैं तो सृष्टि में सारी शक्तियाँ हैं 
बेटियाँ हैं तो घर में खिलखिलाती परियाँ हैं 
बेटियाँ हैं तो जीवन में रंग हैं, अल्हड़ मस्तियाँ हैं ।

बेटियाँ सिर्फ अपनी नहीं, साँझी होती हैं ।
किसी बेटी को तुमसे डर लगे, यह मर्दानगी नहीं होती है । 
तुम मर्द बनो, मर्दानी वो भी होती हैं ।
तुम से कम सयानी वो नहीं होती हैं । 
कोख में मारना, पैदा होते फेंक देना, खाना कम देना, पढ़ने नहीं देना, नौकरी से रोकना 
इसी समाज में होता है 
जब तक आवाज नहीं उठाओ, कोई नहीं सुनता है 

हमारे बीच के राक्षसों को पहचानना हमारा काम है ।
उनसे बेटियों को बचाना हम सब का काम है ।
जिन जिन को एक औरत ने जना है, उसे यह कर्ज़ उतारना है । 
इस संसार को एक अच्छी बेटी दे कर जाना है । 

- प्रत्यूष

Sunday, October 11, 2020

मृत्युशोक

You are free to choose, but you are not free to alter the consequences of your decisions.

आँसू और झूठ कब तक सच को छिपाएंगे
मेरे बच्चे एक दिन मेरे पास आएंगे 
उनके बचपन का एक टुकड़ा मैं खो दूँगा 
पर इसका दोष मैं किसे दूँगा ?

कुछ बातों के लिए खड़ा होना भी जरूरी होता है
लगातार होते आघातों से लड़ना भी जरूरी होता है 
जब अधिकारों की तो बात होगी पर कर्तव्य भूल जाएंगे 
तो कोई भी रिश्ता कैसे निभा पाएंगे 

किसी प्रिय का जाना भी नहीं रख पाता अशोक
सिर्फ किसी की मृत्यु नहीं देती है मृत्युशोक 

- प्रत्यूष



एकांतवास



One can be instructed in society, one is inspired only in solitude.

अकेलेपन का शौक बुरा होता है 
किसने कहा अकेले रहना सज़ा होता है 
मर्ज़ी के मालिक होते हैं हम
हर पल अपना होता है 

जिम्मेदारियों का बोझ कम होता है 
खुशियों का संसार बड़ा होता है 
खर्चे कम होते हैं, 
अपने लिए समय मिलता है 

खुशियाँ बाहर से नहीं आतीं
वो मन से निकलती हैं
खुद से खुश रहना
सबसे जरूरी होता है 

प्रेम, क्रोध, मोह के बंधन 
उलझाते हैं जीवन के मायाजाल में 
इस माया से निकलने का
खुद को समझने का 
एकांतवास, अकेलापन नहीं होता है

- प्रत्यूष

Thursday, October 01, 2020

दुश्मनी

You don't cross your limit, you cross someone's boundary

मेरा घर उजड़ोगे तो अपना घर भी उजड़ा पाओगे 
मेरे बच्चे ले जाओगे तो अपने बच्चे से मिलने को तरस जाओगे
बेईमानी के पैसे पर इतना अकड़ दिखाना ठीक नहीं
एक दिन ऐसा भी आएगा कि दाने दाने को तरस जाओगे 

हर क्रिया की प्रतिक्रिया होगी
दूसरे को कमजोर समझना भूल होगी 
खोने के बाद खोने का डर भी चला जाता है
फिर तो दुश्मनी भरपूर होगी 

जिस संस्कृति में लड़की के घर के पानी पीने को बुरा मानते थे
वहाँ पैसे और रसूख से आत्मसम्मान को बार बार तोड़ना तुम्हारी भूल होगी 
कहना तुम्हारा भी सही होगा कि घर तुम्हारा कमज़ोर था, मैंने तो बस सहारे की जगह धक्का दिया 

बच्चों के लिए झुकूंगा, माँ के लिए खड़ा होऊंगा 
इसमें मुझे बुरा समझना भूल होगी
अगर मुझे सब कुछ खोना है तो फिर
दुश्मनी भरपूर होगी

- प्रत्यूष

Wednesday, July 22, 2020

रिश्ते और शिकायतें

The more you complain about your Problems, the more problems you will have to complain about you

रिश्तों में जब शिकायतों की बनने लगे लिस्ट 
मतलब भरोसे पर चढ़ने लगी मिस्ट 
हर बात को जब दिया जाने लगे नया ट्वीस्ट 
तो कोई उतार नहीं सकता यह रस्ट

- प्रत्यूष




Sunday, June 07, 2020

कोरोना

Not everything which is bad comes to hurt us 

मैं वायरस नहीं शिक्षक हूँ 
देवदूत, पैगम्बर हूँ , मैं जीवन सिखलाने आया हूँ 

पैसे के पीछे भागती इस दुनिया को 
अपने परिवार के साथ बिठाने आया हूँ
कम पैसों में भी खुशियाँ मिल सकती हैं
यह इनको सिखलाने आया हूँ 
मैं वायरस नहीं शिक्षक हूँ 
देवदूत, पैगम्बर हूँ , मैं जीवन सिखलाने आया हूँ 

सिर्फ इंसान बंद हो जाएं तो, प्रकृति कैसे हँसती है 
हवा, पानी, पहाड़, जानवर, चिड़िया कैसे चहकती है
जिन शहरों में धूल के गुबार थे, 
वहाँ से आज हिमालय दिख रहा है 
नदियों का जल फिर से वैसे कलकल करने लगा है
मैं यही दिखलाने आया हूँ 
मैं वायरस नहीं शिक्षक हूँ 
देवदूत, पैगम्बर हूँ , मैं जीवन सिखलाने आया हूँ 

डरो मत मुझसे सीख लो, मैंने बहुतों को नहीं मारा 
इससे ज्यादा इंसानों को तो इंसानों ने ही मारा
कभी आतंकवाद, कभी युद्ध, 
कभी गाड़ियाँ ही टकराई हैं सड़कों पर 
मैं तो तुम्हें सिर्फ नींद से जगाने आया हूँ 
मैं वायरस नहीं शिक्षक हूँ । 
देवदूत, पैगम्बर हूँ , मैं जीवन सिखलाने आया हूँ 

इंसानों को हैसियत मैंने है बतलाई 
पृथ्वी के वे मालिक नहीं 
जियें और सबको जीने दें
यही समझाने आया हूँ 
मैं वायरस नहीं शिक्षक हूँ । 
देवदूत, पैगम्बर हूँ , मैं जीवन सिखलाने आया हूँ 

बुद्ध, मोहम्मद, ईसा, राम की 
बात नहीं समझे इसीलिए
इंसानों को थोड़ा डराने आया हूँ
मैं वायरस नहीं शिक्षक हूँ । 
देवदूत, पैगम्बर हूँ , मैं जीवन सिखलाने आया हूँ

- प्रत्यूष

Monday, June 01, 2020

गँगा

Gita and Ganga constitute, between themselves, the essence of Hinduism: one its theory, and the other is practice. 

प्राणदायिनी, पापनाशिनी, मोक्षदायिनी गंगे 
दुःखहरणी, जीवपोषणी,  जीवनदात्री गंगे 
त्रिपथगी, मंदाकिनी, भागीरथी, गंगे 
ब्रह्मकमंडल उद्भवनी, विष्णु पदगामिनी गंगे 
शिवजटावासिनी जहान्वी गंगे 
कलियुगअंते, स्वर्गगामिनी गंगे
गंगापुत्र सदातारणी गंगे

- प्रत्यूष



गँगा दशहरा (1 जून 2020) मौनी बाबा आश्रम, छितौनी, काशी 

Saturday, September 14, 2019

परिस्थितियों के बंधक

You can close your eyes to reality but not to memories

 जीवन की टूट गई डोर
करते रहे सारे जीवन होड़

जीवनचक्र से बँधे है सारे
तरह तरह के जिम्मेदारी निभाते
कभी बच्चों की तरह, कभी दोस्तों की तरह
कभी भाईयों की तरह कभी पति की तरह
कभी पिता की तरह, कभी नाना की तरह

हर मोड़ पर बदलती जाती हैं प्राथमिकताएं
कभी हम होते आकर्षण के केंद्र
कभी रौशनी हो जाती हमसे दूर
नेपथ्य में जाते उस अपने आप को
यह समझाना चाहिए कि आपका समय हो चुका है पूरा
आत्मा अमर है लेकिन समय हो चुका है बदलने को चोला

जन्म से एक ही सत्य है शाश्वत
उसे करना है आत्मसात
जो आया है उसे है जाना
अगर पूरी जिंदगी, रखा ये याद,
तो कभी पाप कर नहीं पाओगे
सभी रिश्ते सहेज कर निभाओगे
हँसते हुए आये थे और हँसते हुए ही जाओगे ।

- प्रत्यूष

Saturday, March 18, 2017

शिवरात्रि

Shiva unites with Shakti to create.

आज है शिव और शक्ति के मिलन रात्रि |
आज है सृष्टि के सृजन की रात्रि । 

कोई एक मार्ग नहीं है शिव तक पहुंचने का 

आज है सब मार्गों के एक हो जाने की रात्रि । 
आज है शिवरात्रि  

- प्रत्यूष

Thursday, December 31, 2015

बिटिया

Daughters are so special. They hold hand for only a little while, but hold hearts for a life time. 


तुम्हारे आने से दुनिया बदल गई है
तुम्हारे बोलने का इंतजार है
तुम्हारे बड़े होने का डर भी  है 

बच्चे आते हैं, डेरे को घर बनाते हैं 
और फिर एक दिन फुर्र से उड़ जाते हैं 
मैं भी तुमको उड़ने से रोक नहीं पाऊंगा
तुम्हें मंजिल तक पहुँचाने में पूरा जोर भी लगाऊंगा  

बहुत नाजों से पलते हैं बच्चे
फिर  निकल जाते हैं जीवन सवांरने,
अपना घर बसाने 
घर में बूढ़े माँ - बाप छुट जाते हैं 
बाट जोहते, फ़ोनों का, त्योहारों का 

एक दिन उन माँ बापों को शायद कोई याद भी ना करे 
फिर कौन सा रिश्ता निभाता है साथ ?
वही जो दुसरे घर से आई थी 
सब छोड़ छाड़ कर, 
दुसरे की बेटी, अपनी हो जाती है 
अपनी दूर चली जाती है |

- प्रत्यूष 

Sunday, December 29, 2013

नया साल



नए साल की नयी सफलतायें
शुभचिंतकों  की अशेष कामनायें

खुशियों से भरा परिवार हो आपका
सफलतम हो नया साल आपका 

ईश्वर का आशीष साथ हो
नववर्ष मंगलमय हो !


- प्रत्यूष

Thursday, July 11, 2013

चिंगारी


(बोधि  वृक्ष, बोधगया, बिहार ७ जुलाई २०१३ के बम धमाकों के बाद, बौद्ध मान्यताओं के अनुसार यह जगह ब्रहमांड का केंद्र है)


क्या सत्ता देश से बड़ी हो गयी ?
क्या राजनीति, राष्ट्रनीति से बड़ी हो गयी ?
आतंकवाद का रंग न भगवा न हरा होता है
सेकुलरवादियों, चिंगारी का खेल बुरा होता है !

सत्रह बार  क्षमा का दान दिया था  हमनें
पर जयचंद से गद्दारों ने निश्फलित किया हमें
आज तो जयचंदों की फ़ौज है खड़ी
और नैतिकता है चौराहे पर बिक रही

देश की सुरक्षा से कर रहे समझौते
और बना रहे आतंकियों को अपने बेटी - बेटे
मत करो यह खेल सेकुलरवादियों,
चिंगारी का खेल बुरा होता है

हजारों धर्मस्थल तोड़े और अमर जवान ज्योति को भी न बक्शा तुमने
लुटेरे बन कर आये थे तुम, भाई बना कर स्नेह लुटाया हमने
हमने तो "सर्वधर्म समभाव" का संस्कार है पाया
हजारों वर्षों से अनेकों को अपने घर में है बसाया
हम आज भी मिलजुल कर चाहते हैं रहना
पर "देश पहले" का भाव पड़ेगा रखना

ओ नेताओं तुष्टिकरण की नीति छोड़ो, आंतकी हमले रोको
कभी चीन हमें हडकाता है, कभी पाकिस्तान बम फोड़ के जाता है
और तुम रक्षा सौदों में दलाली खाते हो
आतंकी को वोट बैंक बना जाते हो
इस  चिंगारी को दावानल बनने से रोको
सत्ता से देश बड़ा होता है
चिंगारी का खेल बुरा होता है


- प्रत्यूष


अनुजा प्रज्ञा, प्रिये मित्र सेतु और मानस मामा जी को सुझावों के लिए हार्दिक अभिनन्दन  !




Monday, April 08, 2013

मन



जीवन की इस जंकदनि में
कविता का जनन कैसे हो ?
समय के इस  विशृंखलता में
ह्रदय में प्रस्फुटन कैसे हो ?

याद आता है  तुशिता* का वो प्रवास
जहाँ मिला था, मैं अपने आप से
कुछ उत्तर जो ढूढ़ रहा था
निकले थे वो ह्रदय के वास से

मन के भीतर ही था शिव का बसेरा
और मैं ढूँढ़ता रहा उसे पत्थर के शिवालों में
थाम कर अपने मन के रफ़्तार को
मिला था मैं उस दुबके अपने आप से

शिवतत्व है सब में बसता
पहचानों उस प्रछन्न स्त्रोत को
क्योंकी जब आत्मा का मिलन अंतरात्मा से है होता
तब ही सृजन है सजता

-प्रत्यूष


* तुशिता: http://www.tushita.info/

अनुजा प्रज्ञा को आभार !

Monday, December 03, 2012

कारण



कुछ भी यूँ ही नहीं है होता
सबके पीछे कोई कारण है होता
सफलता या असफलता
मनुष्य अपने कर्मों का फल है भोगता

फिर ऊपर बैठा भगवान क्या है करता
क्या वह मानव का अविष्कार है
या उसका भाग्य विधाता
या फिर उसके कर्मों का धाता

- प्रत्यूष

Thursday, November 15, 2012

खिड़की



जिन्दगी कितना हँसाती है
जिन्दगी कितना रुलाती है
उलझने बनाती है, सुलझाती है
जब सारे दरवाजे बंद करती है
तो एक खिड़की खोल जाती है

कभी सब कुछ असाध्य कर जाती है
कभी छप्पर फाड़ कर दे जाती है
पर हर रात के बाद सुबह आती है
और सुबह के बाद रात दे जाती है

जब हँस के खुशियाँ बटोरीं हैं
तो रो के दुःख भी समेटो
खुशियों के पल कम लगते हैं
और दुःख सदियों में फैले लगते हैं
पर जिन्दगी जब सारे दरवाजे बंद करती है
तो एक खिड़की खोल जाती है


खिड़की का मतलब जीना है
असाध्य को साधना है
तैयार होना है की जब दरवाजे खुलें
तो नयी हवायें उड़ा न दे हमें
क्यूंकि जिन्दगी ने हमारे सोच से
परे कि जिन्दगी देखी है

- प्रत्यूष 

Challenges are inevitable
but defeat is optional !


Thursday, October 04, 2012

राहुल भईया



ये तो बिना बने ही बने बनाये हैं
राहुल भईया तो किस्मत ऊपर से लिखवा लाये हैं
जब नेता को ढुंढती जनता आगे
राहुल भईया पीछे पाए जात हैं

भ्रष्टाचार में डूबा जा रहा देश
महंगाई ने ले ली जो बचा रहा शेष
देश की जनता के अवशेषों पर
राहुल भईया पर्यटन करने जात हैं

कलावती के घर नहीं पहुंची अब तक परमाणु बिजली
विदर्भ के किसानों की जान कर्जों ने ले ली
आसाम, उत्तर प्रदेश में हो रहे दंगे
पर राहुल भईया कहीं नहीं दिखाय जात हैं

अमेठी के गावों में आज तक नहीं पहुंची सड़क और बिजली
लोकसभा में उपस्थिति भी काफी कम हो ली
युपी में नाटकबाजी काम न आयी
साइकिल पर जनता ने जम के मुहर लगाई
पर राहुल भईया प्रधानमंत्री बनने जात हैं

ये तो बिना बने ही बने बनाये हैं
राहुल भईया तो किस्मत ऊपर से लिखवा लाये हैं

- प्रत्यूष

Saturday, September 29, 2012

मैगी



कोई नहीं होगी
जैसी है मेरी मैगी

बिखेरती निश्चल प्यार की आभा
समझती है आँखों की भाषा
बिना बोले भी सिखाई है उसने
जीवन की परिभाषा

हजारों कष्टों के बाद भी
जीती है वो हर पल
बेख़ौफ़, निडर, उच्छल
खुशियाँ बांटती प्रतिपल

जानता हूँ कुछ ही वर्षों का साथ है हमारा
पर मैंने भी किया है एक इरादा
जब तक रहूँगा
एक मैगी का अंश रखूँगा
जो याद दिलाएगा इसका प्यार
बनेगा हर कठिनाइयों में मेरा तारणहार

कोई नहीं होगी
जैसी है मेरी मैगी !

- प्रत्यूष 

Thursday, September 20, 2012

कठिनाइयाँ




सरलता से मुझे कुछ मिला नहीं
कठिनाई ही है सखा मेरी
पर लक्ष्य कोई बड़ा नहीं
हारा वही जो लड़ा नहीं

हीरे कोयले का  भेद समझ
और स्वयं चमक हीरे की तरह
है बड़ा हुआ जो मुश्किल में
कोहिनूर बना वो पूरी तरह

यज्ञ में सदा विघ्न डालते असुर
विघ्नों को पार कर
असुरों का संहार कर
कठिनाइयों से हो पोषित
कर विश्व को सम्मोहित

-प्रत्यूष

संपादक श्री सेतु सिन्हा जी को कोटि कोटि धन्यवाद्  । 

Monday, July 16, 2012

समय चक्र



अब नींद कहाँ इन आँखों को
अब चैन कहाँ इन जज्बातों  को
समय चक्र की गति कर रही हैरान 
कल तक था जीवन  वीरान 


अचानक टकराया अपना आधा हिस्सा लस्त-पस्त 
पर पल भर की मुलाकात कर गयी आश्वस्त
उसके सौम्य बातों पर हो मुग्ध
कर बैठा अपना एकाकीपन दग्ध

- प्रत्यूष





Sunday, June 24, 2012

कभी उदास मत होना




समय अब  वह  आ  चला
जब अवसादों  को  पीछे  छोड़ो
भविष्य  की  नूतन  राहें  खोलो
जो  हुआ, उसमें तुम्हारा  भी था योगदान
बनो मत इतने नादान

जीवन  है परिवर्तनशील
लगाव  जाती है इसको लील
पर जीना नहीं  छोड़ना
और ना  ही  नये  सपने  संजोना

अपनी  राख से उठना
अनुभवों  को  संजोना
संस्कारों  को ना  छोड़ना
ना ही रिश्तों को कभी ढ़ोना

परकष्ट का कारण ना होना
जब तक जीना  खुल  कर जीना
फिर  कभी उदास  मत  होना

- प्रत्यूष


श्वेता दीदी का हार्दिक आभार, संपादन, मार्गदर्शन और आशीष हेतु !

देश पहले




[1]
एक  समय  का विश्वगुरु
एक  समय  का  सर्वसमृद्ध  , सर्वशक्तिशाली  साम्राज्य 
आज क्यूँ  हो रहा भारत पीछे ?
क्यूँ  हो रहा समाज  विघटित ?


इतने साधन  इतने  सुविचार 
पर कहीं खोता जा  रहा  सदाचार 
हम  सब  चाह रहे ख़ुशी  और  शांति 
फिर  कौन फैला  रहा अशांति 


ढूंढा  उसको  बहुत इधर -उधर 
पर मिला  वो हम सबके  अन्दर 
मंजिल  तो नेक होती है हमारी 
पर राह  में  मति  जाती है  मारी 
जब मंजिल है ख़ुशी  और शांति 
फिर राह  पर क्यों  फैला  रहे  अशांति 


घटती  नैतिकता, बढती  भौतिकता 
क्यों  चाहिए  इतना, जो प्रयोग  ना हो  जीवन  भर 
और जिसके आस में मिट जायें, कई जिंदगियाँ दहलीज  ही पर 
सिर्फ  लेना  ही नहीं, होना चाहिए  जीवन का विचार 
देने  का भी करना होगा  शिष्टाचार 


होगा तब आने वाला कल बेहतर 
जब  सोचेंगे  खुद  से  परे 
जब सोचेंगे  देश  पहले 


[2]
देखो  जा कर  गावों  और पहाड़ों  में आज भी  जिन्दा  है  मानवता
क्यों  शहरों  में  ही फैलती  जा  रही दलनता 
संतुष्टि  और समाज का चिंतन है वहाँ आगे 
शहरों  में  लोग भौतिकता  के पीछे  भागे 


यह  सृष्टि  नहीं  सिर्फ तुम्हारी 
तुम हो बस किरायेदार 
कुछ वर्षों के यहाँ  पर 
फिर भी बैठे हो यहाँ  भृकुटी  तान 
जैसे मिला हो अमरत्व  का वरदान 


मकान  छोड़ने  से पहले  गन्दा मत  उसे करो तुम 
खुद  से पहले औरों  की सोचों  तुम 
सोचो बड़ा सिर्फ अपने पीछे मत भागो 
कभी खुशियाँ भी अपनी बंदूक से दागो 


देने में  आता  है ज्यादा  मज़ा 
मत दो, अपने को स्वार्थी  बन सजा 
सोचों  खुद से परे 
सोचो  देश पहले 


[3]
धर्म, जाति, गोत्र  बतलाकर, अपने को बड़ा  बतलाते  हो
अरे  कहाँ गया पुरुषार्थ , जो इनमे शरण पाते हो 
क्या याद भी है, गाँधी  था  एक साहूकार 
और दिनकर एक  भूमिहार 
सीमाओं पर  दी कितनों  ने प्राणों  की आहुति 
क्या जानते हो उनकी जाति ?


पांच  हज़ार  वर्षों  का इतिहास  है हमारा 
कितनो ने राष्ट्र  पर सबकुछ  है दे गुजारा 
इतिहास याद रखता है उनको 
जिन्होंने ने किया राष्ट्र  पर समर्पण  खुद को 


आज हम घर बैठ कर चैन की रोटी खाते हैं 
उसमे ना जाने कितना अपना  पसीना  मिलाते  हैं 
नहीं पूछते  हम उन सब की जात 
पर जब अपने फायदे की हो बात,
तो देश में  आग लगाते हम 
मारते और मर जाते हम 


उठो जागो, अब भी है समय 
दानावल फैले  उससे  पहले  यह 
इस  अनल  को मिल आज बुझाते हैं 
खुद से पहले औरों की सोच जाते हैं 


बनाते हैं इस धरा को, कल से बेहतर 
सोचते हैं खुद से पहले 
सोचते हैं देश पहले 


[4]
रखो सदा यह प्रतिपल ध्यान
पृथ्वी  पर हो कुछ पल के मेहमान 
लो उतना ही जितना हो पोषक 
मत बनो अनजाने ही शोषक 


जमा कर रहे किस के लिए ये सब 
जब नहीं हुआ कोई अमर अब तक 
बच्चों का मत लेना नाम 
उन्हें जग मैं करना खुद है अपना काम 


घर मैं ही देखो, कितना इकठ्ठा किया है सामान 
जो नहीं आया वर्षों  से काम 
भोजन भी रोज करते बरबाद 
जब हो सकते हैं , कितने उससे आबाद 
जब लाखों मर रहे भूख से 
और हम फेंक  रहे गुरुर  से 


कहाँ ले जायेगा ये स्वार्थीपन 
देख लो ज़रा  ये दर्पण 
ये कालाबाज़ारी  रोकें हम 
दूसरों  की भी सोचें  हम 
सोचें  खुद से परे 
सोचें देश पहले 


प्रत्यूष 

Monday, May 14, 2012

अंतरद्दंद्द



जीवन रूपी  सागर  मैं उमड़ती हैं अनेक  लहरें
और  ढूँढतीं हैं, अपने पैदा होने का कारण
कुछ  पहुँच  जाती हैं  अपने  किनारों पर
कई खो जाती हैं, समय  की गहराइयों मे उतर  
जीवन  से मिले उन  अनेक  अनुभवों से करता है मेरा मस्तिष्क द्दंद्द
फिर ह्रदय  है  सृजता यह अंतरद्दंद्द !  


प्रत्यूष 


श्री सेतु सिन्हा जी को संपादन  और  मार्गदर्शन  हेतु  कोटि कोटि  धन्यवाद  ! 

रुको नहीं



जीवन  में  कुछ  ऐसे  पल   आते हैं, जो आपको बेबस और असहाय कर जाते हैं 
वह आपको बहुत कुछ सिखला जाते हैं, और जीवन की दिशा बदल जाते हैं 
समझा जाते हैं कि  सपने यथार्थ में कैसे बदले जाते हैं 
जब कठिनाइयाँ घेरें और कोई रास्ता न आये नज़र 
तो रो लो, कर लो विश्राम, पर तलाशो अपनी गलतियां निष्पक्ष चिंतन कर 
पर रुको नहीं 
अपने सपनों को टूटने मत दो 

समय जो घाव देता है, वो समय ही भरता है 
उन कठिन क्षणों मैं धैर्य रखो और भरने दो उन घावों को 
और अपने सही समय का इंतज़ार करो 
पर रुको नहीं 
नयी संभावनाएं, नए  रास्ते तलाश  करो 

अपनी मेहनत  और भाग्य से आगे बढ़ता है मानव 
कैसे हुआ , किसकी गलती, अगिनत सुख, अगिनत दुःख 
इन सब का कारण वह कभी खुद को कभी खुदा को बता जाता है 
पर भूल जाता है, कि यह जीवन  है  एक अथाह सागर
जिसकी सीमाएं जानता है सिर्फ  ईश्वर 
उसने देखी है हमारी उड़ान, और जानता है वो हमारा सामर्थ्य भी 
और उसने न  चाहा  हमारा बुरा कभी 


इसलिए बीच बीच में  सिखलाता है 
कभी सुख  दे कर कभी दुःख  दे  कर 
शांत चित से उसके इशारे समझने चाहिए 
और बढना चाहिए अपने सपनों की और  निरंतर
निर्विवाद, अविराम, अनवरत और अनश्वर !


प्रत्यूष 


आभार :
माँ और श्री मानस  प्रकाश  जी  को संपादन  और मार्गदर्शन हेतु ! 


Monday, May 07, 2012

चांद





क्या यह सब सिर्फ भाग्य का खेल है ?
क्या मनुष्य किसी के हाथ की कठपुतली मात्र है ?
क्या वो अ पनी मेहनत से पा सकता है असंभव भी ?
या वो भी लिख दिया गया है उसके जन्मने से पहले ?

जो आता है इस धरा पर उसे जाना तो है 
पर जाओ तो कुछ  ऐसा करके की, दुनिया याद रख जाये 
कुछ ऐसा करके की दुनिया, फिर वैसी ही ना रह जाये    
यह  सिर्फ  अपने उत्थान से नहीं होगा
और यह  भी सत्य है की पहले स्वयं काबिल बनना होगा 
लेकिन फिर समाज उत्थान में लगना ही होगा 

उसके लिए राजनेता बनने या सत्ता का मिलना जरूरी नहीं 
उसके लिए बस  जन कल्याण का भाव मन मैं रखना  होगा 
और मेरा तेरा से बचना होगा 
ये शरीर और पैसा तो साधन  मात्र है , इसका स्वार्थ छोड़ना होगा 

करोड़ों हृदयों को अपने कर्मों से छूना होगा 
तब सार्थक होगा ये जीवन,
तब जाने के बाद भी याद रखेगी यह दुनिया 
तब चाँद भी कह उठेगा
हाँ ऐसा भी एक मानव  देखा मैंने इस  धरा पर विचरते ! 

-प्रत्यूष 

(सम्पादक: श्री मानस  प्रकाश को  कोटि कोटि धन्यवाद ! )