अंतर्द्वंद
जीवन से मिले अनेक अनुभवों से करता है मेरा मस्तिष्क द्दंद्द, फिर ह्रदय है सृजता यह अंतर्द्वंद !
Monday, July 16, 2012
समय चक्र
अब नींद कहाँ इन आँखों को
अब चैन कहाँ इन जज्बातों को
समय चक्र की गति कर रही हैरान
कल तक
था
जीवन वीरान
अचानक टकराया अपना आधा हिस्सा लस्त-पस्त
पर पल भर की मुलाकात कर गयी आश्वस्त
उसके सौम्य बातों पर हो मुग्ध
कर बैठा अपना एकाकीपन दग्ध
- प्रत्यूष
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