समय अब वह आ चला
जब अवसादों को पीछे छोड़ो
भविष्य की नूतन राहें खोलो
जो हुआ, उसमें तुम्हारा भी था योगदान
बनो मत इतने नादान
जीवन है परिवर्तनशील
लगाव जाती है इसको लील
पर जीना नहीं छोड़ना
और ना ही नये सपने संजोना
अपनी राख से उठना
अनुभवों को संजोना
संस्कारों को ना छोड़ना
ना ही रिश्तों को कभी ढ़ोना
परकष्ट का कारण ना होना
जब तक जीना खुल कर जीना
फिर कभी उदास मत होना
- प्रत्यूष
श्वेता दीदी का हार्दिक आभार, संपादन, मार्गदर्शन और आशीष हेतु !

2nd para last line, I guess u wanted to write dream on, but it sounds do not dream...
ReplyDeleteप्राची जी मतलब बिलकुल साफ़ है ! पर जीना नहीं छोड़ना, ना ही नये सपने संजोना ! फिर से पढिये, सही लगेगा... ये कविता के परतदार होने की निशानी है, परतों मैं उतरिये :)
Deletedon't listen to prachi ji. it is inspiring
ReplyDeleteधन्यवाद मृदु जी ! आते रहियेगा :)
Deletenaye sapno ke bina jeewan kuchh bhi nahi....
ReplyDeletegood going bro...bhavishya ki nutan raahein kholo...
ReplyDeleteप्रज्ञा जी बहुत बहुत धन्यवाद !
Deleteआप अज्ञात हो कर भी ज्ञात हैं ! इतने खुले ह्रदय से समर्थन एक काव्य प्रेमी सहोदरा का ही हो सकता है ! :)
Kahin kahin se kuch janma lagta hai , mashtishk phir soch hriday uffna lagta hai ,anweshan se guthhian suljhaya lagta hai , samvedna shabdon mein piroya lagta hai.....
ReplyDelete...Bas ek vichar...mat shabd ki jagah agar na shabd ka prayog karein to kaisa hoga ?
Sanskaron ko na chhodna , na rishton ko hee dhona (vichar maatra hai)
कहीं कहीं से कुछ जन्मा लगता है
Deleteमस्तिष्क फिर सोच ह्रदय उफना लगता है
अन्वेषण से गुथियाँ सुलझाया लगता है
संवेदना शब्दों में पिरोया लगता है
(हिन्दी के विचार देवनागिरी में ही ह्रदय अभिभूत करते हैं :) )
बहुत बहुत धन्यवाद् दीदी !आपके सुझाव समाहित कर दिए गए हैं ! वो निश्चय ही बेहतर हैं, और मेरी सृजना को और भी निखार रहे हैं ! इसी प्रकार अपना आशीष बनाये रखें !