Daughters are collective responsibility of society
बेटियाँ हैं तो सृजन है, जीवन है, खुशियाँ हैं ।
बेटियाँ हैं तो सृष्टि में सारी शक्तियाँ हैं
बेटियाँ हैं तो घर में खिलखिलाती परियाँ हैं
बेटियाँ हैं तो जीवन में रंग हैं, अल्हड़ मस्तियाँ हैं ।
बेटियाँ सिर्फ अपनी नहीं, साँझी होती हैं ।
किसी बेटी को तुमसे डर लगे, यह मर्दानगी नहीं होती है ।
तुम मर्द बनो, मर्दानी वो भी होती हैं ।
तुम से कम सयानी वो नहीं होती हैं ।
कोख में मारना, पैदा होते फेंक देना, खाना कम देना, पढ़ने नहीं देना, नौकरी से रोकना
इसी समाज में होता है
जब तक आवाज नहीं उठाओ, कोई नहीं सुनता है
हमारे बीच के राक्षसों को पहचानना हमारा काम है ।
उनसे बेटियों को बचाना हम सब का काम है ।
जिन जिन को एक औरत ने जना है, उसे यह कर्ज़ उतारना है ।
इस संसार को एक अच्छी बेटी दे कर जाना है ।
- प्रत्यूष
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