Life is somewhere between hope & hard facts !
मृत्यु द्वार खड़ी है, कैसे उसे समझाऊँ
छोड़ दो मेरे पिता को, कैसे उसे भरमाऊँ
योद्धा को शिथिल देखना, मन को कसकाता है
उसको हारता देख, दिल डूबा जाता है
चालीस की उम्र भी अजीब है
एक तरफ अस्त होता पिता,
एक तरफ उदय होता पुत्र है
प्रारब्ध के आगे सब लाचार हैं
अपनी बारी आने पर,
सब चीज़ें बेकार हैं
-प्रत्यूष

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