तुम्हारे आने से दुनिया बदल गई है
तुम्हारे बोलने का इंतजार है
तुम्हारे बोलने का इंतजार है
तुम्हारे बड़े होने का डर भी है
बच्चे आते हैं, डेरे को घर बनाते हैं
और फिर एक दिन फुर्र से उड़ जाते हैं
मैं भी तुमको उड़ने से रोक नहीं पाऊंगा
तुम्हें मंजिल तक पहुँचाने में पूरा जोर भी लगाऊंगा
तुम्हें मंजिल तक पहुँचाने में पूरा जोर भी लगाऊंगा
बहुत नाजों से पलते हैं बच्चे
फिर निकल जाते हैं जीवन सवांरने,
अपना घर बसाने
अपना घर बसाने
घर में बूढ़े माँ - बाप छुट जाते हैं
बाट जोहते, फ़ोनों का, त्योहारों का
एक दिन उन माँ बापों को शायद कोई याद भी ना करे
फिर कौन सा रिश्ता निभाता है साथ ?
वही जो दुसरे घर से आई थी
सब छोड़ छाड़ कर,
दुसरे की बेटी, अपनी हो जाती है
अपनी दूर चली जाती है |
- प्रत्यूष
- प्रत्यूष

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