“Home is not a place…it’s a feeling.”
बचपन की यादों में भीगा मेरा वो घर
पापा के मेहनत से बना मेरा वो घर
माँ की दुलारों से सज़ा मेरा वो घर
अब हमेशा के लिए छूट रहा
पापा का वो सिंहासन वाला सोफा
माँ को वो दोपहर को सोने वाला सोफा
पापा की बागवानी, माँ की तुलसी की देहरी
अब हमेशा के लिए छूट रहा
दादा, दादी का वो कमरा
उनकी यादें, उनकी बातें
जैकी, शेरू, नंदनी और बहुत से साथी
सबकी यादों वाला मेरा वो घर
अब हमेशा के लिए छूट रहा
बहनों के साथ गुज़रे बचपन के वो दिन
उनसे झगड़े, उनके साथ मस्तियाँ
उनकी शादियाँ
उनके बच्चों की किलकारियाँ
यह सब देखने वाला मेरा वो घर
अब हमेशा के लिए छूट रहा
लक्ष्मण जी, सुरेंद्र जी, खुर्शीद भईया
मनीष, मनोज, घुँघरू और माया
इनकी यादों से महका मेरा वो घर
अब हमेशा के लिए छूट रहा
कहीं भी रहा, सबसे प्यारी नींद उसी घर में आयी
कभी भी फिसला, उसी घर में आ कर सँभला
स्कूल - कॉलेजों से जब मौका मिला
भागा मैं अपने घर
पूरे शहर का सबसे खूबसूरत था वो मेरा घर
अब हमेशा के लिए छूट रहा
बचपन मेरा छूट रहा
जड़ों से अपने मैं कट रहा
निर्णय तो हमने ही लिया था
पर पापा के बिना, उसको छोड़ना
दिल बिल्कुल तोड़ रहा
मकान तो बहुत बन जाएंगे
पर मेरा घर हमेशा के लिए छूट रहा
- प्रत्यूष