Wednesday, October 19, 2022

योद्धा

Sometimes the strongest among us are the ones who smile through silent pain, cry behind closed doors, and fight...

सारी जंगों को जितने वाला भी एक जंग हार जाता है
सामने खड़ी हार को देख वो शायद टूट जाता है
पर बरसों के जंग ने उस योद्धा को यह आत्मविश्वास दिया है
की वह मौत को भी आंखों में देख कर कहे वो जीना चाहता है

उदासी, दुःख और हाथ से छूटती जिंदगी
इन सब का भान हो फिर भी निडरता
और अपनी संतति को खड़ा करने का कर्तव्य बोध 
एक इंसान को एक योद्धा, एक भगवान बना जाता है

कभी भी एक आंसू बिना बहाए
आखिरी दिनों तक काम करने वाले मेरे पापा 
मैं आपको कैसे भूल पाऊंगा 
मैं आप जैसा मजबूत नहीं हूं, 
हर दिन आपको याद करके आज भी रोता हूं

प्रार्थना करता हूं बस भगवान से 
मुझे आप जैसी शक्ति दे
आप मेरे निर्णयों में किसी तरह अपनी बात रखें 
आपको साक्षी मान कर ही मैं कोई निर्णय ले पाता हूं

- प्रत्यूष 

Wednesday, July 27, 2022

एक बरस बीत गया

I can no longer see you with my eyes, touch you with my hands, But I will feel you in my heart forever.

मेरे सपनों में भी आइए पापा
कुछ प्यार, कुछ डांट कुछ बातें 
अपना हाल बता जाइए पापा
आपको गए एक बरस बीतने को है

एक भी दिन ऐसा नहीं गुजरा जिस दिन मैं रोया नहीं
आप सबके सपने में आए पापा 
पर मुझे भूल गए
मुझे भी नींद में सहला जाइए पापा

बहुत कुछ बदल गया इस एक साल में
जिम्मेदारी का अहसास हो गया
थोड़ा दुनिया से विरक्त भी हो गया 
आपका एहसास और गहरा हो गया

मणिकर्णिका में ढूंढता हूं आपको 
गंगा में छूता हूं, 
आप दिखते तो नहीं पर आप हैं 
हर पल अपने चारो तरफ
आपको महसूस करता हूं

- प्रत्यूष 

Monday, June 27, 2022

कुछ को ये बात आसान लगती है

With ordinary talent and extraordinary perseverance, all things are attainable

पत्थर से भगवान बनते हैं
मिट्टी से अनाज बनते हैं 
दिन बनाने में रात लगती है
कुछ को ये बात आसान लगती है 

लोहे से औजार बनते हैं
पौधे से पोशाक बनते हैं
जिंदगी बनाने में जिंदगियां लगती हैं
कुछ को ये बात आसान लगती है 

एक सपने से नए मुकाम बनते हैं
एक कदम से दुनिया नपती है
सफलता अर्जित करने में सदियां लगती है
कुछ को ये बात आसान लगती है

पीढ़ियों के तप से संस्कार बनते हैं
व्यक्तियों के तप से समाज बनते हैं
समाजों के तप से देश बनता है
कुछ को ये बात आसान लगती है

- प्रत्यूष 

Saturday, May 07, 2022

क्षण

      Life is to be lived from moment to moment.


क्षण में बदलती जिंदगी
क्षण में उजड़ती जिंदगी
क्षण में संवरती जिंदगी
क्षण में मिटती जिंदगी

एक क्षण पहले रिश्ते
अगले क्षण सिर्फ लाश
एक क्षण खुशहाल परिवार
अगले क्षण ना भूल सकने वाला दुःख

एक क्षण पहले जीवन में ऊंचा सपना
अगले क्षण सिर्फ जीना ही सपना 
इन क्षणों के बीच ही है जिंदगी 
इन क्षणों में बदल जाती है जिंदगी

क्षणों पर हमारी प्रतिक्रिया,
नए परिस्थितियों में ढलना
इन सबों के बीच अपनी रफ्तार से चल रही होती है जिंदगी
और हम इसे चलाने का दंभ भर रहे होते हैं ।

- प्रत्यूष 

Tuesday, March 01, 2022

कौन है वो ?

       “that which is not; that which is dissolved"

ये माटी के पुतलों को कौन चला रहा है ?
कौन इनमें भावना और जान भर रहा है ?
कौन धरा पर असंख्य पेड़ पौधे उगा रहा ?
कौन चिड़ियों में इतने रंग भर रहा ? 

विज्ञान पहेली सुलझा तो रहा है
पर जितनी बातें सुलझ रही हैं
उतनी ही उलझती जा रही हैं
और शायद दूर बैठा कोई हंस रहा है

जीवन मरण से दूर
सुख दुःख से दूर
क्या कोई हमें देख रहा है?
क्या कोई हमारा भाग्य लिख रहा है?

दिल और दिमाग में द्वंद जारी है 
अगर विज्ञान की माने तो पापा फिर नहीं मिलेंगे
अगर अध्यात्म की माने तो शायद वो उस पार हमारा इंतजार कर रहे हैं
मां का धैर्य देखता हूं तो लगता है वो मिलेंगे 
पर विज्ञान डरा रहा है, बहुत रुला रहा है

इस का जवाब सिर्फ एक के पास है
वो इस पार भी देख रहा और उस पार भी
शायद उसकी मर्जी से सब चल रहा
या वो भी नियमों से बंधा है

- प्रत्यूष 
(महाशिवरात्रि, 2022, काशी)