समय अब वह आ चला
जब अवसादों को पीछे छोड़ो
भविष्य की नूतन राहें खोलो
जो हुआ, उसमें तुम्हारा भी था योगदान
बनो मत इतने नादान
जीवन है परिवर्तनशील
लगाव जाती है इसको लील
पर जीना नहीं छोड़ना
और ना ही नये सपने संजोना
अपनी राख से उठना
अनुभवों को संजोना
संस्कारों को ना छोड़ना
ना ही रिश्तों को कभी ढ़ोना
परकष्ट का कारण ना होना
जब तक जीना खुल कर जीना
फिर कभी उदास मत होना
- प्रत्यूष
श्वेता दीदी का हार्दिक आभार, संपादन, मार्गदर्शन और आशीष हेतु !

