“that which is not; that which is dissolved"
ये माटी के पुतलों को कौन चला रहा है ?
कौन इनमें भावना और जान भर रहा है ?
कौन धरा पर असंख्य पेड़ पौधे उगा रहा ?
कौन चिड़ियों में इतने रंग भर रहा ?
विज्ञान पहेली सुलझा तो रहा है
पर जितनी बातें सुलझ रही हैं
उतनी ही उलझती जा रही हैं
और शायद दूर बैठा कोई हंस रहा है
जीवन मरण से दूर
सुख दुःख से दूर
क्या कोई हमें देख रहा है?
क्या कोई हमारा भाग्य लिख रहा है?
दिल और दिमाग में द्वंद जारी है
अगर विज्ञान की माने तो पापा फिर नहीं मिलेंगे
अगर अध्यात्म की माने तो शायद वो उस पार हमारा इंतजार कर रहे हैं
मां का धैर्य देखता हूं तो लगता है वो मिलेंगे
पर विज्ञान डरा रहा है, बहुत रुला रहा है
इस का जवाब सिर्फ एक के पास है
वो इस पार भी देख रहा और उस पार भी
शायद उसकी मर्जी से सब चल रहा
या वो भी नियमों से बंधा है
- प्रत्यूष
(महाशिवरात्रि, 2022, काशी)