अंतर्द्वंद
जीवन से मिले अनेक अनुभवों से करता है मेरा मस्तिष्क द्दंद्द, फिर ह्रदय है सृजता यह अंतर्द्वंद !
Monday, December 03, 2012
कारण
कुछ भी यूँ ही नहीं है होता
सबके पीछे कोई कारण है होता
सफलता या असफलता
मनुष्य अपने कर्मों का फल है भोगता
फिर ऊपर बैठा भगवान क्या है करता
क्या वह मानव का अविष्कार है
या उसका भाग्य विधाता
या फिर उसके कर्मों का धाता
- प्रत्यूष
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