Saturday, September 29, 2012

मैगी



कोई नहीं होगी
जैसी है मेरी मैगी

बिखेरती निश्चल प्यार की आभा
समझती है आँखों की भाषा
बिना बोले भी सिखाई है उसने
जीवन की परिभाषा

हजारों कष्टों के बाद भी
जीती है वो हर पल
बेख़ौफ़, निडर, उच्छल
खुशियाँ बांटती प्रतिपल

जानता हूँ कुछ ही वर्षों का साथ है हमारा
पर मैंने भी किया है एक इरादा
जब तक रहूँगा
एक मैगी का अंश रखूँगा
जो याद दिलाएगा इसका प्यार
बनेगा हर कठिनाइयों में मेरा तारणहार

कोई नहीं होगी
जैसी है मेरी मैगी !

- प्रत्यूष 

Thursday, September 20, 2012

कठिनाइयाँ




सरलता से मुझे कुछ मिला नहीं
कठिनाई ही है सखा मेरी
पर लक्ष्य कोई बड़ा नहीं
हारा वही जो लड़ा नहीं

हीरे कोयले का  भेद समझ
और स्वयं चमक हीरे की तरह
है बड़ा हुआ जो मुश्किल में
कोहिनूर बना वो पूरी तरह

यज्ञ में सदा विघ्न डालते असुर
विघ्नों को पार कर
असुरों का संहार कर
कठिनाइयों से हो पोषित
कर विश्व को सम्मोहित

-प्रत्यूष

संपादक श्री सेतु सिन्हा जी को कोटि कोटि धन्यवाद्  ।