कोई नहीं होगी
जैसी है मेरी मैगी
बिखेरती निश्चल प्यार की आभा
समझती है आँखों की भाषा
बिना बोले भी सिखाई है उसने
जीवन की परिभाषा
हजारों कष्टों के बाद भी
जीती है वो हर पल
बेख़ौफ़, निडर, उच्छल
खुशियाँ बांटती प्रतिपल
जानता हूँ कुछ ही वर्षों का साथ है हमारा
पर मैंने भी किया है एक इरादा
जब तक रहूँगा
एक मैगी का अंश रखूँगा
जो याद दिलाएगा इसका प्यार
बनेगा हर कठिनाइयों में मेरा तारणहार
कोई नहीं होगी
जैसी है मेरी मैगी !
- प्रत्यूष
