Monday, May 14, 2012

अंतरद्दंद्द



जीवन रूपी  सागर  मैं उमड़ती हैं अनेक  लहरें
और  ढूँढतीं हैं, अपने पैदा होने का कारण
कुछ  पहुँच  जाती हैं  अपने  किनारों पर
कई खो जाती हैं, समय  की गहराइयों मे उतर  
जीवन  से मिले उन  अनेक  अनुभवों से करता है मेरा मस्तिष्क द्दंद्द
फिर ह्रदय  है  सृजता यह अंतरद्दंद्द !  


प्रत्यूष 


श्री सेतु सिन्हा जी को संपादन  और  मार्गदर्शन  हेतु  कोटि कोटि  धन्यवाद  ! 

रुको नहीं



जीवन  में  कुछ  ऐसे  पल   आते हैं, जो आपको बेबस और असहाय कर जाते हैं 
वह आपको बहुत कुछ सिखला जाते हैं, और जीवन की दिशा बदल जाते हैं 
समझा जाते हैं कि  सपने यथार्थ में कैसे बदले जाते हैं 
जब कठिनाइयाँ घेरें और कोई रास्ता न आये नज़र 
तो रो लो, कर लो विश्राम, पर तलाशो अपनी गलतियां निष्पक्ष चिंतन कर 
पर रुको नहीं 
अपने सपनों को टूटने मत दो 

समय जो घाव देता है, वो समय ही भरता है 
उन कठिन क्षणों मैं धैर्य रखो और भरने दो उन घावों को 
और अपने सही समय का इंतज़ार करो 
पर रुको नहीं 
नयी संभावनाएं, नए  रास्ते तलाश  करो 

अपनी मेहनत  और भाग्य से आगे बढ़ता है मानव 
कैसे हुआ , किसकी गलती, अगिनत सुख, अगिनत दुःख 
इन सब का कारण वह कभी खुद को कभी खुदा को बता जाता है 
पर भूल जाता है, कि यह जीवन  है  एक अथाह सागर
जिसकी सीमाएं जानता है सिर्फ  ईश्वर 
उसने देखी है हमारी उड़ान, और जानता है वो हमारा सामर्थ्य भी 
और उसने न  चाहा  हमारा बुरा कभी 


इसलिए बीच बीच में  सिखलाता है 
कभी सुख  दे कर कभी दुःख  दे  कर 
शांत चित से उसके इशारे समझने चाहिए 
और बढना चाहिए अपने सपनों की और  निरंतर
निर्विवाद, अविराम, अनवरत और अनश्वर !


प्रत्यूष 


आभार :
माँ और श्री मानस  प्रकाश  जी  को संपादन  और मार्गदर्शन हेतु ! 


Monday, May 07, 2012

चांद





क्या यह सब सिर्फ भाग्य का खेल है ?
क्या मनुष्य किसी के हाथ की कठपुतली मात्र है ?
क्या वो अ पनी मेहनत से पा सकता है असंभव भी ?
या वो भी लिख दिया गया है उसके जन्मने से पहले ?

जो आता है इस धरा पर उसे जाना तो है 
पर जाओ तो कुछ  ऐसा करके की, दुनिया याद रख जाये 
कुछ ऐसा करके की दुनिया, फिर वैसी ही ना रह जाये    
यह  सिर्फ  अपने उत्थान से नहीं होगा
और यह  भी सत्य है की पहले स्वयं काबिल बनना होगा 
लेकिन फिर समाज उत्थान में लगना ही होगा 

उसके लिए राजनेता बनने या सत्ता का मिलना जरूरी नहीं 
उसके लिए बस  जन कल्याण का भाव मन मैं रखना  होगा 
और मेरा तेरा से बचना होगा 
ये शरीर और पैसा तो साधन  मात्र है , इसका स्वार्थ छोड़ना होगा 

करोड़ों हृदयों को अपने कर्मों से छूना होगा 
तब सार्थक होगा ये जीवन,
तब जाने के बाद भी याद रखेगी यह दुनिया 
तब चाँद भी कह उठेगा
हाँ ऐसा भी एक मानव  देखा मैंने इस  धरा पर विचरते ! 

-प्रत्यूष 

(सम्पादक: श्री मानस  प्रकाश को  कोटि कोटि धन्यवाद ! )